Almora भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। अल्मोड़ा शहर के बीच से कोसी नदी व सुयाल नदी बहती है ,जो इसके आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है।
सभी हिल स्टेशन की तुलना में अल्मोड़ा काफी ज्यादा सस्ता हैं। अल्मोड़ा अपनी शांतिपूर्ण जीवन के साथ-साथ एडवेंचर के शौकीन लोगों के लिए भी एक प्रमुख हिल स्टेशन है। यहां पर आप वाइल्डलाइफ को इंजॉय कर सकते हैं।
अगर आप धार्मिक भावना से जुड़े हैं ,तो यहां पर बहुत से मंदिर है। जिसके आप दर्शन कर सकते हैं।
अल्मोड़ा कैसे पहुंचा जाए
अगर आप Almora फ्लाइट से आना चाहते हैं तो यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर है। और यहां से अल्मोड़ा की दूरी लगभग 116 किलोमीटर है।
पंतनगर से Almora जाने के लिए बस या प्राइवेट टैक्सी मिल जाती है। यदि आप ट्रेन से आना चाहते हैं ,तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। इस से अल्मोड़ा की दूरी मात्र 89 किलोमीटर है। यहां से आपको प्राइवेट टैक्सी मिल जाएगी या फिर बस या फिर अपनी गाड़ी बाइक से भी आ सकते हैं।
दूरी कहां से कहां तक
दिल्ली से अल्मोड़ा 380 किलोमीटर , नैनीताल से अल्मोड़ा 65 किलोमीटर , रानीखेत से अल्मोड़ा 46 किलोमीटर , काठगोदाम से अल्मोड़ा 89 किलोमीटर , बरेली से अल्मोड़ा 189 किलोमीटर है।
यहाँ कुछ मुख्य शहरो की अल्मोड़ा से दुरी की सूचि दी गई है, आप इसके अनुसार अल्मोड़ा से अपने शहर की दुरी देख सकते है।
Your City | Distance |
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Dehradun to Almora | 354 KM |
Haridwar to Almora | 310 KM |
Rishikesh to Almora | 323 KM |
Delhi to Almora | 380 KM |
Jaipur to Almora | 657 KM |
Sri Ganganagar to Almora | 785 KM |
Kolkata to Almora | 1462 KM |
Mumbai to Almora | 1789 KM |
Noida to Almora | 354 KM |
Lucknow to Almora | 444 KM |
अल्मोड़ा काफी बड़ा शहर है तो यहां पर रुकने के लिए होटल धर्मशाला गेस्ट हाउस लॉन्च सब आसानी से मिल जाते हैं।
Best Places to Visit in ALMORA
माँ नंदा देवी मंदिर
कुमाऊँ के शांत नज़ारों में, हिंदू देवी दुर्गा के अवतार, नंदा देवी का एक पवित्र मंदिर है। यह पवित्र मंदिर अल्मोड़ा शहर के मध्य में स्थित है।
कई हिंदू तीर्थयात्री धार्मिक रूप से इस मंदिर में जाते हैं .क्योंकि नंदा देवी को “बुराई का विनाशक” माना जाता है .और कुमाऊं के निवासियों के साथ-साथ उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों के रक्षक भी माने जाते हैं।
नंदा देवी मंदिर का निर्माण चंद राजाओं द्वारा किया गया था। देवी की मूर्ति शिव मंदिर के डेवढ़ी में स्थित है। और स्थानीय लोगों द्वारा बहुत सम्मानित है।
हर सितंबर में, अल्मोड़ा नंदादेवी मेला के लिए इस मंदिर में हजारों हजारों भक्तों की भीड़ रहती हैं, मेला 200 से अधिक वर्षों तक इस मंदिर का अभिन्न हिस्सा है।
नंदा देवी समूचे गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है।
भगवती की 6 अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गा के स्वरूपों का उल्लेख है। उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं।
शक्ति के रूप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा देवी का मूल धाम चमोली के कुरुड़ गांव में है। बाद में कई जगह पर इनके मंदिर बनाए गए। नंदा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है।
डियर पार्क
डियर पार्क अल्मोड़ा से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां अलग-अलग प्रजाति के हिरण देखने को मिल जाते हैं चीता , तेंदुए व काले भालू आपको देखने को मिलेंगे वैसे इसको यहां पर चिड़ियाघर भी बोला जाता है।
चितई मंदिर
अल्मोड़ा से 8.5 किलोमीटर की दूरी पर चितई मंदिर है जिसे गोलू देवता का मंदिर के नाम से जाना जाता है गोलू देवता अपने न्याय प्रिय व सभी की कामना को पूर्ण करने के कारण विश्व प्रसिद्ध है इसीलिए इन्हें न्याय के देवता भी कहा जाता है मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी व्यक्ति अपनी मुराद लेकर आता है तो पूरी हो जाती है लोग मन्नत पूरी होने पर यहां घंटिया भी चढ़ाते हैं यहां मंदिर में लाखों घंटिया है जिसकी वजह से इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहा जाता है लोग चिट्ठी स्टैंप पेपर आदि में अपनी समस्या लिखकर देवता के मंदिर में टांग जाते हैं, जिससे गोलू देवता उन्हें न्याय दिलाते हैं पौराणिक मान्यता के अनुसार चंद्र वंश के राजा बाज बहादुर के सेनापति का नाम गोलू देवता था जो अपनी वीरता के कारण थे किसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने के बाद उनके सम्मान में अल्मोड़ा के चितई मंदिर की स्थापना की गई चंपावत जिले में कई जगह गोलू देवता को अपना इष्ट देव माना जाता है तथा 9 दिन तक उनकी पूजा की जाती है दूसरी कथा के अनुसार गोलू देवता राजा झाल राय के आठवीं रानी की इकलौती संतान थी जो एक चमत्कारी वाला था। राजा की मृत्यु के बाद उसने ही प्रजा की देखभाल की और सबका ख्याल रखा जिससे लोग उन्हें देश का स्वरूप मानने लगे और उनकी पूजा करने लगे गोलू देवता को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे बाला गोरिया , शिव के अवतार गौरव न्याय के देवता गौर भैरव आदि।
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दूनागिरी मंदिर
दूनागिरी मंदिर अल्मोड़ा के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किलोमीटर दूर है देवभूमि उत्तराखंड में बहुत पौराणिक शक्तिपीठ मंदिर है उन्हीं में से एक द्रोणागिरी शक्तिपीठ मंदिर है मंदिर के बारे में कहा जाता है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा ब्रह्म शक्ति लगी थी तब सुषेण वैद्य ने हनुमान जी से प्रांजल नाम के पर्वत से संजीवनी लाने को कहा संजीवनी पर्वत लाते समय उस पर्वत का एक छोटा टुकड़ा ऐसे स्थान पर गिरा गिरा जिसस इस स्थान पर दूनागिरी का मंदिर बनाया गया इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासक सुधार देव ने 1318 ईसवी मैं करके दुर्गा मूर्ति की स्थापना की इस मंदिर में शिव और पार्वती की मूर्तियां भी विराजमान है मंदिर होने का प्रमाण सन 1181 शिलालेखों में मिलता है।
इस पर्वत पर पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इस पर्वत का नाम द्रोणागिरी पड़ा इसी पर्वत पर स्थित भगवान गणेश के नाम से एक चोटी का नाम गणेशधार प्रचलित है इस भव्य मंदिर के दर्शन करने के लिए लगभग 500 सीढ़ियां चढ़ने पड़ती है इस क्षेत्र में कई प्रकार की जीवनदायिनी जड़ी बूटियां भी है, यह से हिमालय के दर्शन भी कर सकते हैं। दूनागिरी मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है और हिमालय के लुभावने दृश्यों के साथ एक शांत और स्वर्गीय स्थान है। दूनागिरी मंदिर में एक अखंड ज्योति भी है। दूनागिरी मंदिर में साल भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है।
पंडित गोविंद बल्लभ पंत राज्य संग्रहालय
अल्मोड़ा कुमाऊं क्षेत्र का बेहद लोकप्रिय हिल स्टेशन है। यूं तो यहां कई पर्यटन स्थल हैं लेकिन आज हम आपको पंडित गोविंद बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय के बारे में बताने जा रहे हैं। अल्मोड़ा में पंडित गोविंद बल्लभ पंत राज्य संग्रहालय की स्थापना 1979 में हुई थी।
अल्मोड़ा स्थित पण्डित गोविंद बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय प्रदेश का एकमात्र ऐसा राजकीय संग्रहालय है, जिसमें उत्तराखंड के पुरातत्व, इतिहास, संस्कृति, वेशभूषा, रहन-सहन से जुड़ी चीजों और वाद्ययंत्र व विभिन्न कलाओं को सुरक्षित रखा गया है। संग्रहालय में लोककला, भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार, लोक देवता, हमारी आराध्या देवी के विभिन्न स्वरूप, जीबी पन्त आदि नाम से वीथिकाएं बनाई गई हैं। मुख्यद्वार पर 16वीं शताब्दी और इससे पूर्व की प्रतिमाएं रखी गई हैं।
उधमसिंह नगर जिले के नानकमत्ता क्षेत्र के खमरिया से लाई गई लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी नाव संग्रहालय के परिसर में रखी गई है। यह नाव पर्यटकों और छात्र-छा़त्राओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनी है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी व राजकीय संग्रहालय प्रभारी डाॅ. चन्द्र सिंह चैहान ने बताया कि यह नाव पूर्णतः लोहे की है, जिसका वजन 25 से 30 कुन्तल के बीच है। यह नाव 1930 के दशक में नानकमत्ता डैम के टूटने से डहरिया में वहाँ के लोगों को मिली थी।
भौतिक विज्ञान विभाग के सत्यापन के बाद इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने के लिए 2015 में अल्मोड़ा स्थित संग्रहालय में लाया गया था।
कसार देवी मंदिर अल्मोड़ा
उत्तराखंड में कसार देवी मंदिर अत्यधिक आवेशित भू-चुंबकीय क्षेत्रों के प्रभाव के तहत इस ग्रह पर केवल तीन स्थानों में से एक है जो नासा द्वारा खोजे गए वान एलेन बेल्ट के भीतर आते हैं।
देवी दुर्गा के अवतार कसार देवी को समर्पित यह प्राचीन मंदिर।
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अन्वेषणों ने कसार देवी के भू-चुंबकीय क्षेत्र को समान उच्च चुंबकीय क्षेत्र, माचू पिचू और स्टोनहेंज के साथ अन्य दो प्रसिद्ध स्थानों के बराबर होने की पुष्टि की है। इन क्षेत्रों की उपस्थिति के कारण, आपको परम शांतिपूर्ण और आराम का अनुभव मिलता है, जिसे मैंने व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है।
कसार देवी मंदिर अल्मोड़ा माल रोड से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैऊपर की चढ़ाई खड़ी थी, लेकिन जिस मिनट आपने मंदिर के आसपास के समतल क्षेत्र पर पैर रखा, थकान बस गायब हो गई। आपने जो कुछ भी महसूस किया वह शांति, उत्थान ऊर्जा और सहजता की गहरी भावना थी। जिन लोगों ने यहां ध्यान किया है उनका दावा है कि वे एक विशेष प्रकार की शांति और कायाकल्प महसूस करते हैं।
स्याही देवी मंदिर
पवित्र सियाही देवी मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है यह मंदिर शीतलाखेत उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में हवालबाग ब्लॉक में पर्यटक आकर्षण है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मुख्यालय से 36 किमी दूरी पर स्थित है। यह मंदिर शीतलाखेत की पहाड़ी चोटी पर स्थित है यहां जाने के लिए शीतलाखेत से आगे पैदल यात्रा करनी पड़ती है। शीतलाखेत जो अपने आप में प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है।
सियाही देवी पहाड़ियों पर 1900 मीटर की ऊंचाई पर गर्व से बैठा, शीतलाखेत कुमाऊं हिमालय में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है। यह स्थान लगभग चार सौ साल तक कुमाऊं का सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र रहा है, जो चंद राजाओं द्वारा बसा है और ब्रिटिशों द्वारा विकसित है| स्याही देवी पहुंचने के लिए आप शीतलाखेत पहुंचें. अगर शीतलाखेत में ठहरना चाहें तो आपको यहां कई होम स्टे मिल जाएंगे, जहां आप सुविधाजनक रूप से ठहर सकते हैं. यहां कुमाऊं मंडल विकास निगम का भी होटल है. स्याही देवी के घने वन से घिरे पर्वत शिखर के लिए ट्रेक और कैम्पिंग का आनंद उठा सकते हैं|
कटारमल सूर्य मंदिर
उड़ीसा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद कटारमल सूर्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित किया गया भारत का दूसरा सबसे बड़ा और प्राचीनतम मंदिर है।
कटारमल सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुखी है जिसे एक ऊँचे वर्गाकार चबूतरे पर निर्मित किया गया है। सूर्य मंदिर कटारमल तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कटारमल सूर्य मंदिर दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े सूर्य मंदिरों में से एक है। कटारमल सूर्य मंदिर में 45 छोटे मंदिर शामिल हैं।
कटारमल सूर्य मंदिर की कहानियां भी मंदिर जितनी ही आकर्षक हैं। आप यहां सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। यह सूर्य मंदिर एक खूबसूरत गांव की चोटी पर स्थित है। कटारमल सूर्य मंदिर 9वीं शताब्दी का मंदिर है, जिसे कत्युरी राजा कटारमल्ला ने बनवाया था। यह उत्तराखंड की धरोहर है। ऐसी धरोहर जिसे सैकड़ों साल पहले बनवाया था कत्यूरी वंश के शासक राजा कटारमल ने।
राजा कटारमल के नाम पर ही इस जगह का नामकरण हुआ है। कटारमल सूर्य मंदिर कटारमल नामक छोटे से गांव के शीर्ष पर स्थित है। सूर्य मंदिर में साल में दो बार गर्भ गृह में सूरज की किरणें पड़ती है। 22 अक्टूबर और 22 फरबरी को सूरज की किरण सीधे मंदिर में रखी भगवान सूर्य की मूर्ति पर पड़ती है।मूर्ति पद्मासन में बैठे हुए सूर्य भगवान की है।बट आदित्य (बट की लकड़ी ) की लकड़ी में सूर्य भगवान का आह्वान कत्यूरी शासक कटारमल ने किया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम कटारमल पड़ा। मुख्य मंदिर के ठीक आगे एक छोटा मंदिर है जिस पर एक चौकोर छेद है।इसी छेद से सूर्य की किरण सूर्य प्रतिमा पर पड़ती है।यहाँ से अल्मोड़ा,कोसी नदी, कसार देवी, स्याही देवी और हिमालय पर्वत चोटियों के दर्शन होते है।
मुख्य मंदिर की ऊँचाई लगभग 60 फुट है और इसके चारों तरफ 45 मंदिर है।जनवरी के महीने यहाँ भंडारा लगता है। गाँव में झिंगोरा,मंडुआ,धान, गहत,भट्ट,रेन्स दालों का उत्पादन किया जाता है।ग्रामीण महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह की भी बनाया है जिससे स्थानीय उत्पादों को एकत्रित किया जाता है। गाँव कुमाँऊ मंडल विकास निगम के कॉटेज भी बनाये है।
डोल आश्रम
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लॉक में स्थित यह आश्रम हमारी धनी प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की जीती जागती मिसाल है। श्री कल्याणिका हिमालयन देवस्थानम न्यास कनरा-डोल (डोल आश्रम) नाम से जानी जाने वाली यह जगह अपने आप में अद्भुत और अनोखी है। यह मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 37 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
यहां के मुख्य महंत बाबा कल्याण दास जी महाराज हैं।जिनके अनुसार यह सिर्फ एक मठ नहीं है। बल्कि इसको आध्यात्मिक व साधना केंद्र के रुप में विकसित किया जा रहा है।ताकि देश विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां पर बैठकर ध्यान व साधना कर सके।
डोल आश्रम की विशेषता यह है की यहां पर 126 फुट ऊंचे तथा 150 मीटर व्यास के श्रीपीठम का निर्माण हुआ है। श्रीपीठम का निर्माण कार्य सन 2012 से शुरू हुआ था ।और अप्रैल 2018 में यह बनकर तैयार हो गया।इस श्रीपीठम में एक अष्ट धातु से निर्मित लगभग डेढ़ टन (150कुंतल) वजन और साढ़े तीन फुट ऊंचे श्रीयंत्र की स्थापना की गई हैं। इस यंत्र की स्थापना के अनुष्ठान 18 अप्रैल 2018 से शुरू होकर 29 अप्रैल 2018 तक चले। इस यंत्र की स्थापना बड़े धूमधाम से की गई।यह विश्व का सबसे बड़ा व सबसे भारी श्रीयंत्र है। और यह आश्रम में मुख्य आकर्षण का केंद्र है । वैदिक एवं आध्यात्मिक आस्था को एक साथ जोड़ने के लिए इस श्रीयंत्र की स्थापना की गई है।
डोल आश्रम में अनेक तरह की सुविधाओं उपलब्ध हैं ।आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहने व खाने की सुविधा है।तथा यहां पर एक मेडिटेशन हाल भी है। तथा साथ ही साथ यह चिकित्सा सेवा भी उपलब्ध करा रहा है। जिसके तहत एक डिस्पेंसरी खोली गई है।
प्रसव पीड़ित महिलाओं को तत्काल सेवा देने के लिए एक एंबुलेंस की सुविधा भी की गई है। आश्रम में विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा का ज्ञान दिया जाता है ।तथा उनको हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता व संस्कृति से रूबरू कराया जाता है। आश्रम में 12वीं कक्षा तक संचालित संस्कृत विद्यालय को पब्लिक स्कूल के रूप में विकसित किया जा रहा है ।कई बच्चों को इस स्कूल में निशुल्क शिक्षा भी प्रदान की जा रही है ।
बिनसर महादेव मंदिर
बिनसर महादेव मंदिर रानीखेत, अल्मोड़ा और उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और देवता शिव को स्थापित करता है। मंदिर की वास्तुकला उत्तरी भारतीय मंदिरों की विशिष्ट है और इसमें दो बड़े टॉवर हैं।
बिनसर महादेव मंदिर उत्तराखंड में सबसे लोकप्रिय हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उत्तराखंड के रानीखेत जिले में स्थित है।
समुद्र स्तर से 2480 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर हरे-भरे देवदार के जंगलों से घिरा हुआ है। शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था। मान्यताओं के अनुसार, सिर्फ एक दिन में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। मान्यता के अनुसार, किसी समय पर बिनसर के पास स्थित सोनी गांव में मनिहार रहते थे, बताया जाता है कि जब इस जंगल में गायें चरने के लिए जाती थीं, तो वापस लौटने के बाद एक गाय का दूध निकला रहता था। एक दिन मनिहार ने उस गाय का पीछा किया, तो देखा कि जंगल में एक पत्थर के ऊपर खड़ी होकर गाय दूध छोड़ रही थी और पत्थर वह दूध पी रहा था.गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी से पत्थर पर प्रहार कर दिया. इससे उस पत्थर से खून की धार बहने लगी। शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी के वार के निशान दिखाई देते हैं।
इस मंदिर में 1970 से अखंड ज्योत जल रही है। मंदिर में करीब 12 भगवानों की मूर्ति स्थापित है. बिनसर महादेव मंदिर देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा हुआ है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 2 घंटे की दूरी पर स्थित है।
माना जाता है कि यह मंदिर अपने पिता बिंदू की याद में राजा पिठ्ठ द्वारा निर्मित है और इसे बिंदेश्वर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।देवदार,पाइन और ओक के जंगल से घिरा हुआ यह मंदिर राज्य में आने के लिए अपना एक अलग स्थान रखता है। बिनसर महादेव में जब भी मेला लगता है तो लोग काफी ज्यादा मात्रा में यहां आते है । इस मंदिर की एक अलग ही पहचान है।
आप भी यहां जरूर आये और असीम शांति को प्राप्त करे। बिनसर महादेव मंदिर उत्तराखंड में सबसे लोकप्रिय हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उत्तराखंड के रानीखेत जिले में स्थित है। मंदिर में बड़ी संख्या में मंदिर और अद्भुत नक्काशीदार मूर्तियां हैं। मूर्तियां हिंदू पौराणिक कथाओं के विभिन्न प्रकार के दृश्यों को दर्शाती हैं।
जागेश्वर धाम
जागेश्वर धाम 125 प्राचीन मंदिरों का एक समूह है, जो भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा में देवदार के जंगल के बीच स्थित है। इसे 5वीं से 11वीं शताब्दी के सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। जागेश्वर एक हिंदू तीर्थस्थल है और शैव धर्म परंपरा में धामों (तीर्थ क्षेत्र) में से एक है।
जागेश्वर कभी लकुलीश शैव धर्म का केंद्र था, संभवतः भिक्षुओं और प्रवासियों द्वारा जो गुजरात जैसे स्थानों से भारतीय उपमहाद्वीप के मैदानों को छोड़कर ऊंचे पहाड़ों में बस गए थे। कुमाऊँनी भाषा और गुजराती भाषा के बीच समानता शायद इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि लकुलीश के अनुयायी जागेश्वर में बस गए थे।
JAGESHWAR DHAM साइट भारतीय कानूनों के तहत संरक्षित है, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा प्रबंधित की जाती है। इसमें दंडेश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी या नौ दुर्गा, नवा-ग्रह मंदिर, एक पिरामिड मंदिर और सूर्य मंदिर शामिल हैं।
यह एक राष्ट्रीय विरासत है जहां एएसआई द्वारा चल रहे एक शोध से मंदिर के आसपास के नए रहस्य हर दिन सामने आ रहे हैं।
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conclusion
उत्तराखंड का एक बहुत ही सुंदर जिला अल्मोड़ा जहां पर घूमने के लिए बहुत सारे स्थान हैं लेकिन जो सबसे प्रसिद्ध और सबसे सुंदर है उनकी सूची हमने यहां पर आपको दी है आप इनके अनुसार अपने Trip का plan बना सकते हैं और अल्मोड़ा को बहुत अच्छे से घूम सकते हैं।
FAQs (Top 10 Places to Visit in ALMORA)
Famous temples in Almora?
JAGESHWAR DHAM, KASAR DEVI MANDIR, CHITAI MANDIR,
DOL ASHRAM BINSAR MAHADEV
What is special about Almora?
Almora भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। अल्मोड़ा शहर के बीच से कोसी नदी व सुयाल नदी बहती है ,जो इसके आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है।
What is the famous food of Almora?
अल्मोड़ा की बाल मिठाई बहुत ही ज़्यादा प्रसिद्ध हैं।
Where is dol ashram in Almora?
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लॉक में स्थित यह आश्रम हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की जीती जागती मिसाल है। श्री कल्याणिका हिमालयन देवस्थानम न्यास कनरा-डोल (डोल आश्रम) नाम से जानी जाने वाली यह जगह अपने आप में अद्भुत और अनोखी है। यह मंदिर Almora से लगभग 37 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
अल्मोड़ा में कटारमल सूर्य मंदिर कहाँ पर हैं ?
कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कटारमल सूर्य मंदिर दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े सूर्य मंदिरों में से एक है। कटारमल सूर्य मंदिर में 45 छोटे मंदिर शामिल हैं।
Great Information and hardwork Mam
Thanku