हम आज यहां पर CHITAI GOLU TEMPLE Almora के बारे में जानेंगे जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है इनका मंदिर अल्मोड़ा, उत्तराखंड में स्थित है।
अल्मोड़ा से कुछ ही दूरी पर स्थित यह मंदिर जिसे गोलू देवता के मंदिर के नाम से जाना जाता है यह एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे न्याय के देवता के मंदिर के रूप में पूजा जाता है।
CHITAI GOLU TEMPLE
सनातन धर्म में अनेकों मंदिर है जिनमें से एक अल्मोड़ा से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चितई मंदिर है। जिसे गोलू देवता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। उत्तराखंड में गोलू देवता को कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौरव भी है। गोलू देवता को शिव का ही एक अवतार माना जाता है। आइए जानते हैं ,कैसे यह न्याय के देवता बने।
गोलू देवता की जीवन गाथा
CHITAI GOLU History
प्राचीन काल में नेपाल के धोली धुमाकोट के एक प्रसिद्ध राजा तालराई हुए। वे बड़े ही न्याय प्रिय और जनता के सेवक थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक राज्य किया उनकी एक संतान हुई जिनका नाम हालराय था। जिन्होंने आगे चलकर अपने पिता का राजकाज संभाला। उनके राज्य में प्रजा सुखी व संपन्न थी।
राजा हालराय के बाद उनके पुत्र झालराय राजा हुए। इन्होंने भी अपने पिता के कार्य को आगे बढ़ाते हुए राज्य का उद्धार किया। इन्होंने जगह-जगह लोगों के पानी पीने हेतु नोले बनवाए। और नए-नए रास्तों का निर्माण करवाया। और कई जगह मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया।
राजा अपनी प्रजा की सेवा में दिन रात लगे रहते थे। उन्हें कोई संतान नहीं होने से उन्होंने एक के बाद एक 7 विवाह करें किंतु फिर भी उनकी संतान नहीं हुई। अतः संतान सुख नहीं होने के कारण वह बहुत दुखी रहने लगे। और राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा इसी चिंता में रहने लगे।
एक बार राजा ने अपने कुलगुरू को अपनी सारी समस्या बताएं और उनसे इसका समाधान पूछा ज्योतिष शास्त्र के महान ज्ञानी कुलगुरू ने उनकी जन्म कुंडली देखकर बताया कि उनके भाग्य में 8 रानियों का योग है। और उसी आठवीं रानी से उन्हें पुत्र प्राप्त होगा। जो एक देव स्वरूप होगा और आगे चलकर न्याय के देवता के रूप में जाना जाएगा। यह जानकर राजा बहुत खुश हुए।लेकिन साथ ही उन्हें यह भी चिंता सताने लगी कि उम्र के इस पड़ाव में कौन उन्हें अपनी कन्या देगा। इसी सोच में वे डूबे रहते और अपने इष्ट देवों को याद करते रहते एक दिन राजा भैरव के मंदिर गए। वहां उन्होंने अपने मन की सारी पीड़ा कहीं। और दर्शन करके वापस आ गए। उसी रात सपने में राजा को भैरव देवता के दर्शन हुए और भैरव देवता बोले , हे राजन् तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे घर में जन्म लूंगा।
राजा कि जब नींद खुली तो उन्होंने भैरव देवता को धन्यवाद किया। और अगले दिन से राजा अपने कार्यों में लग गए। एक दिन राजा अपने राज्य की देखभाल के लिए सैनिकों के साथ राज्य के भ्रमण में निकले और जाते-जाते एक घने जंगल में पहुंच गए।
चलते- चलते उन्हें वहाँ दो दिन से अधिक हो गया। लेकिन राजा को कोई गांव नहीं मिला और जंगल समाप्त होने पर राजा झालराय को एक चट्टान मिली। राजा अपने सैनिकों के साथ चट्टान पर चढ़ते गए चट्टान समाप्त होने पर एक समतल भूमि दिखाई दी। वहां पर राजा अपने सैनिकों के साथ थोड़ा आराम करने लगे। राजा ने देखा थोड़ी दूर पर दो भैंसे आपस में लड़ाई कर रहे हैं।
राजा ने कुछ सैनिकों को उन्हें छुड़ाने के लिए कहा और कुछ को पानी की तलाश में जाने को कहा। राजा के सैनिकों ने भैंसे को अलग करने की कोशिश की परंतु वे असफल हुए। पानी ढूंढने गए सैनिक एक झरने के पास पहुंचे वहां पर एक कन्या अपने घड़े में पानी भर रही थी। सैनिकों ने उस कन्या से पानी पिलाने का आग्रह किया। जिससे उस कन्या ने सैनिकों को पानी पिलाया। तथा सैनिकों ने उस कन्या से विनती की कि हमारे महाराजा यहां से कुछ दूरी पर हैं ,उनको भी प्यास लगी है।
उस कन्या ने अपने हाथों से राजा को पानी पिलाने की बात कही। और वह सैनिकों के साथ पानी का घड़ा लेकर राजा के पास पहुंची। उसने देखा कि दो भैंसे आपस में लड़ रही हैं। उसने राजा को प्रणाम किया और कहा हे राजन आप पानी पीजिए मैं भैंसों की लड़ाई छुड़ा कर आती हूं।
देवकन्या पानी का घड़ा रखकर भैंसों की लड़ाई छुड़ाने चली गई। उसे जाता देश राजा सोचने लगा कि जो काम मेरे सैनिक नहीं कर पाए वह काम यह देवकन्या कैसे करेगी। सभी लोग उसे देख रहे थे। देवकन्या ने दोनों भैंसे के कान पकड़े और इधर-उधर फेंक दिया।
राजा झालराय उस कन्या के साहस को देखकर चकित रह गए। और उससे पूछा कि देवी आप कौन हो और आपका नाम क्या है। वह बोली में पंच नाम देवता की बहन हूं मेरा नाम कॉलिंका है। मेरे माता-पिता नहीं है मेरे चाचा ने ही मुझे पाला है। राजा ने पूछा कि क्या आप मुझे अपने चाचा से मिला सकती हो। देवकन्या बोली मैं मिलाने को तो मिला दूंगी पर आप उनसे घृणा मत करना क्योंकि उन्हें कोढ़ हो गया है। और वह बहुत बीमार रहते हैं राजा बोले ऐसा नहीं होगा।
राजा ने अपने सैनिकों को वापस राज्य में जाने को कहा और स्वयं उस कन्या के साथ उसके चाचा से मिलने चले गए। घर पहुंचकर कॉलिंका ने अपने चाचा को बताया कि राजा झालराय आपसे मिलने आए हैं। चाचा ने राजा को प्रणाम किया और उनकी सेवा न कर पाने के लिए खेद किया।
राजा ने वहीं पर रहकर उनकी सेवा की और उन्हें अपना दुख बताया। कुछ दिन बीत जाने पर चाचा बोले राजन आपने मेरी काफी सेवा की जिसका मैं आभारी हूं। कृपया आप मेरे अंत समय में मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लीजिए। कॉलिंका का मेरे सिवा इस संसार में कोई नहीं है।
आप उससे विवाह कर लीजिए। राजा ने स्वीकार कर लिया और कॉलिंका का हाथ राजा के हाथ में देते हुए चाचा ने अपना आशीर्वाद दिया और अपने प्राण त्याग दिए। कॉलिंका को साथ लेकर राजा अपने राज्य धोलीधुमाकोट ले आए। वहां विधि विधान से उन दोनों का विवाह और देवी कॉलिंका का राजा जी की आठवीं रानी बनी। कुछ महीने बाद रानी गर्भवती हुई, राजा बहुत प्रसन्न हुए।
किंतु उनकी सात रानियों में निराशा छा गई। और वे षड्यंत्र रचने लगे जब रानी का प्रसूति का समय आ गया। तो रानी कॉलिंका की आंखों में पट्टी बांध दी गई जिससे वह अपने बच्चे को ना देख सके जब बच्चा पैदा हुआ तो एक रानी ने बच्चे को गौशाला में डाल दिया, कि गाय अपने पैरों से कुचल कर उसे मार दे। और रानी कॉलिंका के पास सिलबट्टा रख दिया और उससे कहा कि तुमने तो सिलबट्टे को जन्म दिया दिया है।
तुमने तो राजा की हंसी करवा दी यह देखकर रानी सिलबट्टे को अपने सीने से लगाकर खूब रोने लगी। सातों रानियां राजा के पास गई और बोली हम तो मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं रही। आप भी किसी को मत बताना कि रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है।
राजा दुखी थे वह दूसरे दिन भी रात दरबार में नहीं गए सातों रानियां बच्चे को देखने गौशाला गए तो वहां बच्चा खेल रहा था। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। गाय घुटने टेक कर बच्चे को अपना दूध पिला रही थी। उसे एक खरोच भी नहीं लगी थी। फिर रानियों ने गोबर के ढेर में बच्चे को डाल दिया। बच्चा गोबर में भी खेलते रहा था। तो रानीओ ने फिर बिच्छू घास के ढेर में उस बालक को डाल दिया जहां 1 फन वाला सांप रहता था। परंतु बच्चा वहां से भी जीवित बच कर आ गया।
तब उन सातों रानियों ने एक साथ ताले वाले लोहे के बक्से में बच्चे को डालकर कालीघाट नदी में बहा दिया। बच्चा 7 दिन 7 रात बहते बहते गौरी घाट पहुंचा 18 दिन एक मछुआरे को वह बक्सा मिला। उसने बक्सा खोलकर देखा तो उसमें एक नवजात शिशु खेलते हुए मिला।
मछुआरे को कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह बालक को अपने घर ले आया और अपनी पत्नी से बोला आज भगवान ने हमारी सुन ली वे दोनों उस बालक का भरण पोषण बड़े प्यार से करने लगे। कुछ दिन बाद बालक का नामकरण संस्कार किया तो बालक का नाम बाला गोरिया रखा गया। बालाक गोरिया धीरे-धीरे बड़ा होता गया।
एक दिन बाला गोरिया को रात में स्वप्न हुआ कि उसके पिता राजा झालराय व माता कॉलिंका है। जो धोली धुमाकोट में रहते हैं। उसकी सात सौतेली माताएं भी है। जिन्होंने षड्यंत्र करके उसे कालीघाट नदी में बहा दिया था। इतने में बालक की आंखें खुल गई और उसने अपने माता-पिता (मछुआरे) को स्वप्न की सारी बातें बताइए यह सुनकर मछुआरे को यकीन आ गया तब बालाक गोरिया बोला मेरे लिए एक काठ का घोड़ा लाओ फिर एक बढ़ई ने उसके लिए काठ का घोड़ा बनाया।
गोरिया काठ का घोड़ा देख कर बड़ा खुश हुआ। धीरे-धीरे गोरिया बड़ा हुआ वह मछुआरे से जिद करने लगा कि मैं धौली धुमाकोट जाता हूं। आप लोग चिंता मत करना मैं जल्दी वापस आ जाऊंगा। इतना कहते ही गोरिया ने काठ के घोड़े को अपने चमत्कार से जीवित कर दिया। मछुआरा और उसकी पत्नी उसे आंखों से ओझल होने तक देते रहे। आकाश मार्ग से जाते हुए गोरिया को नौला दिखा बाला गोरिया ने अपने घोड़े को वहां पर उतारा वहां पर सातो रानी अभी पानी भरने आई थी।
तभी बाला गोरिया बोला आप लोग यहां से हटो मेरे घोड़े को प्यास लगी है। इसे पानी पीने दो। तभी सातों रानियां हंसने लगी और बोली कहीं लकड़ी का घोड़ा भी पानी पीता है। तब गोरिया बोला जब रानी से पत्थर का सिलबट्टा पैदा हो सकता है। तब काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है। इस पर भी सभी हैरान हो गए और जल्दी जल्दी पानी भर के चले गए और राजा से उस बालक की शिकायत करने लगे।
राजा ने तुरंत उस बालक को पकड़कर लाने का आदेश दिया तब उस बालक ने अपने जन्म के बारे में राजा को बताया कि कैसे साधु रानियों ने उन्हें धोखा देकर मुझे मारने का षड्यंत्र जाता। तब राजा को क्रोध आया और उसने साथियों को एक साथ फांसी पर लटकाने का आदेश दे दिया।
तब गोरिया ने अपने पिता से उन्हें माफ करने की विनती की और कहा सातों सौतेली माता को वनवास जाने की सजा दी जाए। राजा ने ऐसा ही किया तब राजा अपने बेटे को रानी कॉलिंका के पास ले गया जो सिलबट्टी को लेकर बड़ी उदास बैठी थी। तब बालक ने माता को प्रणाम किया और माता ने उसे अपने सीने से लगा लिया। मां की आंखों से आंसू एक सील पर और दूसरा बट्टे पर पड़ा उसी समय सिल हरूवा वह बट्टा कलुआ बन गया। राजा ने बाला गोरिया का तिलक कर उसे धोली धूमाघाटी का राजा बनाया और हरूवा कलुआ को उनका दीवान बनाया जिससे कि तीनो भाई एक साथ रहे।
यहीं से गोरिया न्यायप्री कहलाए और वह अपने धर्म के माता-पिता (मछुआरे) को भी धोली धूमाघाटी ले आए। राजा झालराय और उनकी पत्नी 1 तपस्या के लिए चले गए और गोरिया से कह गए कि तुम प्रजा की अच्छे से देखभाल करना। तथा मेरी वह अपनी माता की चिंता मत करना। बाला गोरिया बचपन से ही बड़े साहसी वह ज्ञानी थे।
अपनी प्रजा का हमेशा ख्याल रखते और सही न्याय करते इनके न्याय व वीरता के चर्चे दूसरे राज्यों में भी चर्चित हो गए। उसी समय चंपावत के महाराजा नागनाथ का राज्य था राजा बड़े ही धर्मात्मा दानी थे। नागनाथ के समय टनकपुर पिथौरागढ़ के बीच सिमड नाम का बड़ा तालाब था।
उसमें एक जटिया नाम का भयंकर मसान रहता था। मसान इतना भयंकर था कि उस तालाब के आसपास कोई भी आता। वह उसको खा जाता था लोगों में से हाहाकार मच गई फिर आज आने बाला गोरिया से मदद मांगी मदद मांगने पर गोरिया वहां आए और जटिया मसान और उनके बीच कई देवता भयंकर हुआ अंत में जटिया मसान बुरी तरह गिर गया और गोरिया से माफी मांगने लगा बाला गोरियाने उससे कहा कि आप आज के बाद तू प्रजा को कोई कष्ट नहीं देगा अगर तूने ऐसा नहीं किया तो मैं तेरे दो टुकड़े कर दूंगा।
मसान वचन दिया कि आज के बाद कोई कष्ट नहीं देगा। वापस आने पर राजा नागनाथ ने अपना राज्य छोड़कर तपस्या को चले गए। इस प्रकार गोरिया राज्य चम्पावत स्थापित हो गया। और पूरे कुमाऊं में बाला गोरिया की महागाथा गाई जाने लगी।
इनकी याद मैं जगह-जगह मंदिरों की स्थापना की गई वह पूजा जाने लगे बाला गोरिया का मूल मंदिर चंपावत के गोरील चौड़ में स्थित है। यहां इनको गोरील के नाम से भी जाना जाता है। जब लोगों को न्यायालय में न्याय नहीं मिलता है तो वह मंदिरों में आकर अपनी अर्जी लगाते हैं बाला गोरिया उनको न्याय दिलाते हैं इसी वजह से उनको न्याय के देवता भी कहा जाता है।