Patal Bhuvneshwar Mandir | Uttarakhand

PATAL BHUVNESHWAR

Patal Bhuvneshwar Mandir एक ऐसा मंदिर है, जो रहस्य से भरा हुआ है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1350 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यहां प्राकृतिक गुफा धरती से करीब 100 फीट नीचे है, और और यह 160 मीटर लंबी चूना पत्थर की गुफा है। यह गुफा मंदिर Uttarakhand के पिथौरागढ़ ज़िले में स्थित है।

इसके अंदर की गहराई में आस्था का एक अलौकिक वह अद्भुत संसार मौजूद है। इस गुफा के अंदर देवताओं का रहस्य छुपा हुआ है। जिसकी महिमा स्कंद पुराण के मानस खंड में भी वर्णित है। यहां पर आदि शंकराचार्य भी आए थे।

Patal Bhuvneshwar का वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है, जहां भगवान गणेश जी का सर रखा गया था। इस स्थान पर विराजित गणेश जी की मूर्ति को आदि गणेश भी कहा जाता है। इस गुफा में गणेश जी की कटी हुई मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला ब्रह्मकमल है, इस ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के शीला रूपी मस्तक पर लगातार जल की बूंदें टपकती रहती है।

इन जल की बूंदो को अमृत की धारा भी कहा जाता है। इस गुफा के अंदर गणेश जी के मस्तक के साथ ही आप वहां पर श्री केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी किए जा सकते हैं। Patal Bhuvneshwar की गुफा भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के अंदर करीब 107 मीटर लंबी है। कहा जाता है कि इस गुफा की खोज आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी।

Patal Bhuvneshwar Mandir वाकई किसी स्वर्ग से कम नहीं है, देवभूमि Uttarakhand में स्थित इस गुफा का रहस्य सभी को हैरान कर देने वाला है।

Patal Bhuvneshwar Mandir Kaise jaye

पाताल भुवनेश्वर मंदिर

यह मंदिर Uttarakhand के कुमाऊं में Almora से सेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय करके पहाड़ी के मध्य बसें गंगोलीहाट (Gangolihaat) कस्बे में है। पाताल भुवनेश्वर का निकटतम हवाई अड्डा पिथौरागढ़ में नैनी सैनी हवाई अड्डा है जो लगभग 91 किलोमीटर की दूरी पर है, तथा यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो मंदिर से लगभग 192 किलोमीटर है। आप यहाँ Bus व Taxi आदि से भी आ सकते हो।

history of Patal Bhuvneshwar Mandir

हिंदू धर्म में भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है, भगवान गणेश के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वती जी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था।

लेकिन जो मस्तक गणेश जी के सर से अलग किया गया था शिव ने इस गुफा में रख दिया था। स्कंद पुराण के अनुसार कहा जाता है कि स्वयं महादेव पाताल भुवनेश्वर गुफा में विराजमान रहते हैं, और अन्य देवी देवतायें उनकी स्तुति करने यहां पर आते हैं।

यह भी बताया गया है कि त्रेतायुग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपुर जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में आ गए थे, तो उन्होंने इस गुफा के अंदर महादेव सहित 33 कोटी देवी देवताओं के एक साथ दर्शन किए थे। द्वापरयुग में पांडवों ने यहां पर चौपड़ खेला और कलयुग में जगतगुरू आदि शंकराचार्य का इस गुफा से साक्षात्कार हुआ। तो उन्होंने जहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया माना जाता है कि सभी देवी देवता आकर शिवजी की आराधना करते हैं।

Inner view of Patal Bhuvneshwar

PATAL BHUVNESHWAR

Patal Bhuvneshwar गुफा के अंदर का नजारा बेहद ही अलग है, जो इस गुफा के अंदर जाता है वह बाहर की दुनिया को भूलकर उसके रहस्यों में खो जाता है। गुफा के अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है। यह गुफा पत्थरों से बनी हुई है, और यहां पर पत्थर से कई आकृति बनी हुई है।

इसकी दीवारों से लगातार पानी आता रहता है। इसी कारण यहां के जाने का रास्ता बेहद चिकना है गुफा में शेषनाग की आकृति का एक पत्थर भी है। कहा जाता है कि इसी शेषनाग के ऊपर धरती टिकी हुई है। इस गुफा के अंदर चार खंभे हैं जो चार युगों – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलयुग को दर्शाता है।

इनमें से तीन खम्बो के आकार में कोई परिवर्तन नहीं होता। कलयुग के खंबे की लंबाई अधिक है और इसके ऊपर एक पिंड लटक रहा है इसके बारे में मान्यता है कि जिस दिन यह पिंड कलयुग के खंबे से मिल जाएगा उस दिन कलयुग समाप्त हो जाएगा और धरती पर महाप्रलय आ जाएगा।

गुफा के अंदर बैठने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है, कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ऋषि कुंड में सभी नागों को जला दिया था। परंतु तक्षक नामक नाग निकला जिसने बदला लेते हुए राजा परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया था। हवन कुंड के ऊपर इसी तरह की आकृति बनी है।

वही सामने की दीवार पर काल भैरव की आकृति दिखाई देती है। माना जाता है कि भगवान शिव ने इस कुंड को अपने नागों के पानी पीने के लिए बनवाया था। इसकी देखभाल एक गरुड़ के हाथों में थी, मगर जब गरुड़ ने इस कुंड में पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से से उसकी गर्दन मोड़ दी थोड़ी आगे ऊंची दीवार पर जटा नुमा संरचना बनी हुई है इस जगह पर एक जलकुंड है, जिसकी मान्यता है कि पांडवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिए यह जलकुंड बनवाया था। यहां पांडवों ने तपस्या की थी आगे दो खुले दरवाजों के अंदर संकरा रास्ता जाता है।

इसके बारे में कहा जाता है यह द्वार धर्म द्वार और मोक्ष द्वार है यहां पर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे का शिवलिंग भी है। माना जाता है कि गुफा के आखिरी छोर पर पांडवों ने सिंह जी के साथ चौपड़ खेला था। इस गुफा को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।

Conclusion

हमारे सनातन धर्म में आज भी ऐसे कई रहस्य हैं जिनके बारे में कोई भी वैज्ञानिक और विद्वान नहीं जान पाया है। सनातन धर्म में कई तरह की परंपराएं और विधियां है अगर हम इन्हें जान ले तो हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। Patal Bhuvneshwar की गुफा भी इसी का एक उदाहरण है।

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