सावन मास में की जाने वाली परंपरा, Kawad Yatra (कावड़ यात्रा) का बहुत बड़ा महत्व है। सावन का महीना भगवान शिव का महीना माना जाता है, इसलिए हर साल लाखों श्रद्धालु सुख शांति की कामना के लिए इस पावन यात्रा के लिए निकलते हैं।
इस साल 2023 में कावड़ यात्रा 4 July 2023, मंगलवार से प्रारंभ होगी तथा 31 अगस्त को समाप्त होगी।
सावन के महीने में कांवड़ ले जाने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा होती है। कावड़ यात्रा भगवान शिव को समर्पित है। इस यात्रा में कांवड़ ले जाने वाले यात्री शिवलिंग को गंगा के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
यह यात्रा 28 दिन की होती है। यानी इसमें 4 हफ्ते आते हैं। जिन चार हफ्तों में चार सोमवार पढ़ते हैं, सोमवार भगवान शिव का विशेष दिन है। सोमवार के दिन ही भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। कावड़ के लिए गंगाजल ही सबसे उपयुक्त माना गया है। जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
कावड़ क्या है?
कावड़ अर्थात कंधा, जो कंधे पर ले जाया जाए वह है कावड़, और मान्यता के अनुसार कावड़ शब्द संस्कृत के कवारथी शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है कंधे पर कावर रखे हुए। हर वर्ष लाखों शिव भक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए ईष्ट शिवलिंगों तक पहुंच कर जल अर्पित करते हैं।
कावड़ दिखता कैसा है?
लकड़ी से बनी एक पट्टी जो कि श्रद्धालु कंधे पर रखते हैं और इसी पट्टी के साथ जुड़े दोनों सिरों पर टोकरिया होती है और इन्हीं दोनों टोकरीयों के अंदर दो कलश होते हैं जिन पर गंगाजल होता है।
कैसी होती है यह यात्रा?
शिव जी के भक्त मन्नत मांगते हैं कि हम सावन में कावड़ लेकर यात्रा करेंगे यह सभी श्रद्धालु घर से कावड़ लेकर निकलते हैं और इनके सबसे पास जो गंगा गुजरती है वहां जाते हैं। और गंगा से कलश में गंगाजल भरकर आसपास के जो भी प्रतिष्ठित शिव मंदिर है वहां जाकर शिवजी का जलाभिषेक करते हैं और फिर घर आकर ही उनकी यह मन्नत सफल मानी जाती है।
कैसे शुरू हुई कावड़ यात्रा?
सावन में कावड़ यात्रा निकालने की परंपरा काफी पुरानी है। कई बार लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि कावड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है? यह यात्रा कैसे प्रांरभ हुई? किसने इस यात्रा का प्रारभ किया था? और भी बहुत सारे ऐसे प्रश्न लोगों के मन में आते हैं।
पहली कहानी
कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावड़ यात्री थे, उन्होंने बिहार के सुल्तान गढ़ से कांवड़ में गंगाजल भर बाबा धाम यानी बैजनाथ में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था।
पुराणों में यह कहानी भी आती है कि समुद्र मंथन से निकले हुए विष को भगवान शिव ने जब अपने कंठ में धारण कर लिया था तो उसके प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव पर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया था तभी से गंगाजल लाकर सावन में शिव जी को समर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।
दूसरी कहानी
शिव भक्त रावण ने विषपाई को राहत देने के लिए जल भरकर उत्तर प्रदेश में स्थित पुरा महादेव मंदिर में शिवजी का जलाभिषेक किया। इसके बाद से ही कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई। कुछ जगह यह भी मान्यता है कि परशुराम द्वारा भी भगवान शिव का गंगाजल से जलाभिषेक करने के बाद ही कावड़ यात्रा का शुभारंभ हुआ।
तीसरी कहानी
त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने दृष्टिहीन माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने लाए थे। श्रवण कुमार द्वारा हिमांचल के ऊना क्षेत्र से मायापुरी यानी हरिद्वार अपने दृष्टिहीन माता पिता को गंगा स्नान करने लाए थे। इसके लिए उन्होंने एक कावड़ बनाई और अपने दोनों माता-पिता को उसी में बैठाया और अपने माता-पिता को स्नान करवाने के बाद वापसी में वह अपने साथ गंगाजल भी ले आए और यही से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
कावड़ किस-किस स्थान से होकर जाती है?
कांवड़ का मुख्य उद्देश्य शिवलिंग पर जल अर्पण करना है। अगर आपके आसपास गंगा नदी नहीं है तो आप फिर भी कावड़ ले जा सकते हैं। इसमें एक दूसरा विधान है, जिसमें कावड़ यात्री अपने क्षेत्र के आसपास की सबसे पावन नदी में से जल ले जाते हैं।
ऐसी मान्यता शिवलिंग के लिए भी है अगर आपके क्षेत्र में कोई ज्योतिर्लिंग या शिव मंदिर नहीं है तो आप अपने स्थान के प्रसिद्ध मंदिरों में शिवजी को जल अर्पण कर सकते हैं। ज्योतिर्लिंग तो पूरे देश में स्थित है परंतु यह परंपरा उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है।
उत्तर भारत में ज्यादा श्रद्धालु काशी विश्वनाथ में पहुंचते हैं। काशी विश्वनाथ में श्रद्धालु वाराणसी के आसपास के सभी क्षेत्रों से यहां जल चढ़ाने आते हैं। इस यात्रा में लगभग 120 किलोमीटर होते हैं। इसके अलावा कई अन्य बड़े मंदिर भी हैं जैसे बैजनाथ धाम(झारखंड) इसे कांवरियों का परमधाम भी कहा जाता है।
यहां पर हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कहा जाता है कि जब भगवान शिव रावण के साथ चलने के लिए एक ही शर्त पर तैयार हुए कि वह शिवलिंग जमीन पर नहीं रखेंगे और रावण इस शर्त को पूरा नहीं कर पाया और उसने जिस स्थान पर शिवलिंग रखा उसी स्थान पर बैजनाथ धाम की स्थापना हुई।
कावड़ यात्रा के नियम
इस यात्रा के बहुत से नियम भी होते हैं, जिससे तोड़ने पर कावड़ यात्रा अधूरी रह जाती है और ना ही आपको इसका पुण्य मिलता है। कावड़ यात्रा के दौरान कावर को बिना स्नान किए स्पर्श करना मना होता है। अगर आप इस यात्रा में शामिल होना चाहते हैं, तो स्नान करके ही यात्रा में आगे बढ़े।
यात्रा सूरज उगने के 2 घंटे पहले से और सूरज बनने के 2 घंटे बाद तक ही करनी होती है। इस यात्रा के दौरान आपको कभी भी कावड़ को नीचे नहीं रखना होता है और अगर आपको विश्राम करना है तो उस समय आप उससे पेड़ या ऊंचे स्थान पर रखा जाता हैं।
कावड़ यात्रा के दौरान आपको पवित्रता का बहुत ही ध्यान रखना पड़ेगा ध्यान रहे इस दौरान आपको किसी भी प्रकार के चमड़े से बनी किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं करना होगा। कावड़ को सर के ऊपर ले जाना वर्जित है।
भोले के भक्तों को कावड़ यात्रा के दौरान गलत शब्दों का प्रयोग व क्रोध या विवाद नहीं करना चाहिए। उन्हें इस यात्रा का शांतिपूर्ण ढंग से समापन करना चाहिए।कावड़ यात्रा के दौरान आपको बोल बम व जय शिव शंकर का जयकारा या फिर शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए .
कावड़ यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा या फिर मांस व भांग का सेवन ना करें। इस पावन यात्रा के दौरान आप किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन ना ले। इस यात्रा के दौरान आपको दूसरे यानि आपने साथी का खाना पानी नहीं पीना होता है। और इस पूरी यात्रा में आपको साफ़ कपड़े पहनने होते हैं और बाल व नाख़ून नहीं कटवाने होते हैं। और किसी बिस्तर पर नहीं बल्कि जमीन पर ही कपड़ा डालकर सोना होता है। और ज्यादा बात नहीं करनी होती है जितना जरूरत हो उतना ही बोलो।
कांवर लेकर चलते वक्त किसी को छूने से बचें और कावड़ यात्री यात्रा के दौरान अपने साथियों का नाम नहीं लेते बल्कि उन्हें भोले के नाम से पुकारते हैं। कावड़ यात्रा के इन तमाम नियमों का पालन करने के साथ-साथ आपका शिव के प्रति भक्ति भाव होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। शुद्धता पवित्रता व संकल्पिता के साथ की गई यात्रा से प्रसन्न होकर कल्याण के देवता भगवान शिव अपने भक्तों पर अवश्य कृपा करते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
कितने तरीके के होते हैं कांवड़
सामान्य कावड़
इस कांवड़ को कहीं भी रुक कर, कावड़िए रुक जाते हैं। इसे आराम से कर सकते हैं। इसमें कांवड़ दिन में कई बार खा पी सकते हैं। जो लोग पहली बार कावड़ यात्रा में शामिल होते हैं या कावड़ यात्रा की शुरुआत करते हैं वह इस तरह के कांवड़ से ही करते हैं। यह सबसे आसान माना जाता है क्योंकि इसमें में ज्यादा नियम नहीं है।
डाक कावड़
यह नॉनस्टॉप कावड़ यात्रा है। अगर आपने गंगाजल एक बार अपने कावड़ में भर लिया तो आपको कहीं भी रुकना नहीं है या फिर आप उसी दिन भगवान का जलाभिषेक कर सकते हैं कई बार श्रद्धालु दौड़ते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं और इससे कई लोग मिलकर पूरा करते हैं।
खड़ि या खलेसरी कावड़
भक्त कावड़ को दिन-रात कंधे पर रखते है तथा दो या तीन लोग मिलकर खड़ी कांवड़ को करते हैं। कुछ जगह पर इसे खलेसरी या दूसरे नामों से भी जाना जाता है।
बैठी कावड़
बैठी कावड़ को बैकुंठी या झूला कावड़ भी कहा जाता है। इसे एक व्यक्ति लेकर चलता है और रात के समय किसी पेड़ या तने के सहारे कावड़ को रख दिया जाता है।
कैसे शुरू करते हैं कावड़ यात्रा
* कावड़िए सुबह 2:00 से 3:00 बजे के आसपास जल पात्र लेकर घर से निकलती हैं। * पानी वाला पात्र खंडित नहीं होना चाहिए आजकल तो प्लास्टिक के कैन खूब प्रचलित है। * जल पात्र को साफ रेशमिया सूती कपड़े से लपेटा जाता है। * नियम के अनुसार गंगाजल भरने से पहले व्रत रखना होता है यानी कुछ नहीं खाना होता है। * सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि गंगाजल लेने के बाद कावड़ को जमीन पर नहीं रखना होता है।
कावड़ yatra 2023 start and end date
इस साल 2023 में कावड़ यात्रा 4 July 2023, मंगलवार से प्रारंभ होगी तथा 31 अगस्त को समाप्त होगी।
Which month is कावड़ Yatra?
सावन मास में की जाने वाली परंपरा, Kawad Yatra (कावड़ यात्रा) का बहुत बड़ा महत्व है। सावन का महीना भगवान शिव का महीना माना जाता है। कावड़ यात्रा सावन के महीने यानि जुलाई – अगस्त में होती है।
Kawad Yatra कितने दिन की होती है ?
यह यात्रा 28 दिन की होती है। यानी इसमें 4 हफ्ते आते हैं। जिन चार हफ्तों में चार सोमवार पढ़ते है।
डाक कावड़ क्या होती है ?
Dak Kawad (डाक कांवड़ यात्रा) में आप विश्राम नहीं कर सकते हैं। इस कावड़ में गंगाजल को कावड़ में लेकर भागना होता है यानि लगातार यात्रा करनी पड़ती है और शिवजी को जल अर्पित करने तक बीच में रूकना नहीं होता है।
खड़ी कांवड़ क्या होती है ?
भक्त कावड़ को दिन-रात कंधे पर रखता है तथा दो या तीन लोग मिलकर खड़ी कांवड़ को करते हैं।