हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ का नाम हर्षिल भगवान विष्णु के नाम पर पड़ा। माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने भागीरथी नदी की जलधारा का प्रवाह कम करने के लिए यहाँ पर शिला का रूप धारण कर लिया था। जिसके उपरान्त इस जगह का नाम हरि की शिला पड़ा। शुरुआत में इसे हरी शीला के नाम से जाना जाता था, परंतु बाद में इसका नाम हर्षिल पड़ा। यह स्थान चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है।
Harsil और Wilson से जुडी हुए दो प्रमुख लोककथाएं है जो इस क्षेत्र के इतिहास और रहस्यों से पर्दा उठाती हैं। इस blog के माध्यम से हम आपको इन कथाओं के बारे में बताएंगे और साथ ही ये बताएंगे की क्यों देवता ने Wilson के पुरे परिवार को शार्प दिया।
Raja Of Harsil Valley, Uttarakhand
अगर बात करें हर्षिल घाटी (Harsil Valley) के राजा फेडरिक विल्सन की, तो प्रथम अफगान युद्ध (1839-42) के दौरान वह पलायन कर टेहरी-गढ़वाल के जंगलों में छिप गया था। टिहरी गढ़वाल में आने के बाद फेडरिक विल्सन ने इस क्षेत्र का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने ग्रेट गेम में एक साहसी भूमिका निभायी और 1845 में एंग्लो सिख युद्ध में भी भाग लिया। जब ब्रिटिश भारत को लगभग खो चुके थे, फ्रेडरिक विल्सन ने ही भारतीय रेलवे में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी लोग उन्हें “द राजा ऑफ हर्षिल” (The Raja of Harsil) के नाम से जानते हैं। परंतु उनकी इस महान गाथा के पीछे भी कई रहस्य हैं, जो आज भी कई लोगों से अनजान हैं।

Frederick Wilson ने हिमालय में व्यवसायिक लकड़ी निर्माण कार्य की शुरुआत की और उन्होंने हर्षिल वैली (Harsil Valley Tourism) का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया। विल्सन भारत के पहले लकड़ी निर्माता बन गए। विल्सन यहाँ अपनी बीवी और एक बच्चे के साथ Harsil आए थे। जिसके उपरान्त उनकी अंग्रेजी बीवी की मृत्यु हो गई । जिसके उपरान्त उन्होंने हर्षिल के पड़ोसी गाँव मुखबा से एक स्थानीय लड़की से शादी कर ली थी जिसका नाम संग्रामी उर्फ गुलाबी था। जिससे उनको कोई संतान नहीं हुई जिसके उपरांत उन्होंने राय माता से शादी कर दो सन्तानों को जन्म दिया।
Harsil Valley Story 1: राजा ऑफ़ हर्षिल’ फ्रेडरिक विल्सन की अनसुनी कहानी
Frederick Wilson बड़े ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। यहाँ के लोग अपने क्षेत्रीय देवता को बड़ा ही मानते हैं। आज भी Harsil Valley Uttarakhand में उनकी पूजा की जाती है और प्रत्येक वर्ष एक लोक मेला (Harsil Fair) भी आयोजित होता है, जहां डोला उठाया जाता है। इस डोले में किसी दैवीय शक्ति के होने के कारण वह स्वयं ही नाचता है।
जब विल्सन ने यह देखा तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ और उसने देवता की परीक्षा लेना चाही। उसने अपने एक हाथ में तिल और दूसरे हाथ में सोने की अशर्फियाँ रखीं, दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बंद कीं और उन्हें अपने कोट की जेब में डाल लिया। फिर वह देवता की डोली के समक्ष पहुँचा और चुनौती भरे स्वर में कहा, “अगर आप सचमुच देवता हैं, तो बताइए कि किस हाथ में क्या है?”
देवता की डोली कुछ क्षण स्थिर रही, फिर अचानक एक दिशा में झुकने लगी। डोली की हर हरकत को समझने वाला मुख्य पुजारी तुरंत सक्रिय हुआ। उसने भीड़ में खड़ी एक स्त्री की ओर इशारा करते हुए कहा, “जैसे इस महिला के गाल पर तिल है, वैसे ही आपके दाहिने हाथ में तिल है।” फिर डोली दूसरी दिशा में झुकी, और पुजारी ने सोने का हार पहने एक और महिला की ओर इशारा करते हुए कहा, “और आपके बाएँ हाथ में सोने की अशर्फियाँ हैं।”
यह बात सुनकर न केवल वहां खड़े लोग, बल्कि खुद विल्सन भी अवाक रह गया। उसे पहली बार अहसास हुआ कि ये कोई साधारण शक्ति नहीं थी – यह सचमुच दिव्यता का प्रमाण था।
Harsil Valley Uttarakhand: विल्सन की अंतिम परीक्षा
ऐसी ही एक और बार विल्सन देवता की परीक्षा लेने के लिए आतुर होता है जिसमें देवता देवता तलवारों के ऊपर नंगे पाँव चला करते हैं। यह कारनामा जब विल्सन ने देखा तो वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाया और उसने कहा कि इन तलवारों में धार नहीं है तब ही। यह लोग आराम से इसके ऊपर चल पा रहे हैं। उसने अपने बंगले में जिसे विल्सन विला भी कहा जाता है।
वहाँ कमरों में साथ सबसे तेज धारी वाली तलवारें रखी हुई थी। उसने देवता को चुनौती देते हुए कहा कि यदि आप इनके ऊपर चल कर दिखा सकते हैं तो मैं आपको मानने लगूँगा, और हुआ भी ऐसा ही देवता ने यह परीक्षा भी पार कर ली और कहा कि तेरे उस महल में एक बक्से के अंदर एक शोल और विजय घंटी है जा उसे लेकर आ और मुझे उड़ा दें उस घंटी को मेरे मंदिर के मुख्य द्वार में टांग दे।
आज से यह विजय घंटी उस बात का प्रमाण है कि मैंने तुझे पराजय किया था। विल्सन को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि उस शाल। के बारे में उसकी पत्नियाँ भी नहीं जानती थी तो देवता को यह बात कैसे पता चली? वह जल्द ही अपने वहाँ से शॉल और घंटी लाया और जैसा कि देवता ने कहा था। उसने वैसा ही किया और उनको शत् नमन किया परंतु देवता उसे क्रोधित हो गये उससे कहा कि तूने हर बार मेरी शक्तियों पर संदेह कर कर मुझे परीक्षा देने पर मजबूर किया है और हर बार तू मेरे से हारा है, इसलिए आज से मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तेरे पूरे वंश का सर्वनाश हो जाएगा और तेरा कोई भी संतान जीवित नहीं रहेगा।
साथ ही इतिहास में से तेरा नाम कोई याद नहीं रखेगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही Wilson का पूरा खानदान और उसका घर नहीं रहा। आज भी विल्सन की कहानी सभी लोगों को नहीं पता है।

Conclusion (फ्रेडरिक विल्सन और हर्षिल घाटी का विकास)
जब Frederick Wilson ने गढ़वाल में अपना घर बसाया तो Harsil Valley काफी पसंद आई और यहाँ के ऊँचे ऊँचे देवदार वृक्षों को देखकर उसके मन में व्यापार करने का खयाल आया तब वह टिहरी के राजा सुदर्शन शाह से मिला और उनसे मिलकर उसने लकड़ी की कटाई और व्यापार में विशेष रिआयत का अनुरोध किया। तब राजा एक सौ पचास रुपये वार्षिक भुगतान मैं इस सौदे को स्वीकार कर लिया जिसे बाद में राजा ने बढ़ाकर चार सौ रुपये प्रति वर्ष कर दिया। इस सौदे के अनुसार विल्सन ने हिमालय के इस क्षेत्र हर्षिल। में कई देवदार वृक्षों का कटान किया।
इन्हीं लकड़ियों से कई इमारतें भी बनाई और इस व्यापार से वह उत्तर भारत का सबसे अमीर आदमी बन गया। Harsil Valley में पहले लोग तिब्बत में नमक का व्यापार किया करते थे। वे लोग अपने यहाँ होने वाले अनाज को तिब्बत ले जाया करते थे। और उस अनाज के बदले वहां से नमक लाते थे। परंतु विल्सन के आने के बाद यह कारोबार खत्म हो गया और विल्सन ने यहां तीन प्रकार के सिक्के चलाए थे। इन सिक्कों को वेल्सन मनी के रूप में जाना जाता था, इधर के स्थानीय लोगों उसे हुनसिन साहब कह कर बुलाते थे। जो जितना काम करता विल्सन उसको उसके काम के हिसाब से सिक्के दिया करता था और यह सिक्के लोग अपने व्यापार में उपयोग किया करते थे।
Harsil Valley, Uttarakhand में कस्तूरी मृगों (Musk Deer in Harsil) की पहचान भी सबसे पहले विल्सन ने ही की थी। उन्होंने न केवल वनों का दोहन किया, बल्कि स्थानीय लोगों को सेब और राजमा की खेती करना सिखाया (Apple Farming in Harsil, Rajma Cultivation in Harsil) आज भी ये दोनों चीज़ें Harsil Valley की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं।