HARELA Uttarakhand | उत्तराखंड का लोकपर्व त्योहार

Harela

Harela Uttarakhand का लोकपर्व त्योहार है। Uttarakhand के लोगों द्वारा श्रावण मास में पढ़ने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि सावन मास भगवान शिव को समर्पित है, और उन्हें विशेष प्रिय है। हरेला मनाने से घर में सुख समृद्धि व शांति आती है।

Uttarakhand की भूमि को देवभूमि अर्थात शिव की भूमि भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान शिव का निवास स्थान यही देवभूमि कैलाश (हिमालय) में है। इसलिए सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है।

हरेला उत्तराखंड में मुख्यतः कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। यह पर्व हरियाली व खेती से जुड़ा है। इस दिन किसान भगवान से अच्छी फसल की कामना करते हैं। हरेला बरसात के मौसम की उगने वाली पहली फसल का प्रतीक है। मान्यता यह है कि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह को ही उत्तराखंड के लोग हरेले पर्व के रूप में मनाते हैं।

 हरेले के इस पर्व में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की मूर्तियां मिट्टी द्वारा बनाई जाती है व उन्हें सजाया जाता है जिन्हें स्थानीय भाषा में डीकारे कहा जाता है, व हरेले के दिन इन मूर्तियों की पूजा अर्चना की जाती है।

HARELA(हरेला) क्या है?

Uttarakhand में कई सारे लोकपर्व मनाए जाते हैं जिनमें से एक हरेला भी है। यह पर्व हर साल कर्क संक्रांति को मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रकृति संरक्षण पर जोड़ देता है। इस त्यौहार को ऋतुओं के स्वागत का त्योहार भी कहा जाता है। उत्तराखंड में ऋतु के अनुसार कई प्रकार के पर्व मनाया जाते हैं। उन्हीं में से एक पर्व है हरेला।

हरेले शब्द का अर्थ व Harela कितने बार मनाया जाता है?

हरेला

हरेले शब्द का तात्पर्य हरियाली से होता है और यह पर्व वर्ष में 3 बार आता है। पहला चैत्र मास में व दूसरा सावन मास में और तीसरा वर्ष का आखिरी पर्व हरेला अश्विन मास में मनाया जाता है। अश्विन मास में मनाया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव व सर्दी की ऋतु आने का प्रतीक माना जाता है। चैत्र मास में मनाया जाने वाला हरेला गर्मी की ऋतु आने का प्रतीक है और सावन मास में मनाया जाने वाला हरेला ही प्रमुख हरेला माना जाता है इसे वर्षा ऋतु आने का प्रतीक माना जाता है

हरेले पर्व में गाए जाने वाला गीत

_HARELA UTTARAKHAND

यह गीत तब गाते हैं जब घर के बड़े सदस्य छोटे बच्चो को आशीर्वाद देते हैं और उन्हें बिठाकर दोनों हाथों से हरेले को पहले घुटने, कंधे और फिर सिर पर रखते हैं।  

"जी रया, जागि रया,
यो दिन, यो महैंण कैं नित-नित भ्यटनै रया।।
दुब जस पगुर जया,
धरती जस चाकव, आकाश जस उच्च है जया ।
स्यूं जस तराण ऐ जौ, स्याव जसि बुद्धि है जौ ।
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
जी रया, जागि रया।। "

जिसका अर्थ है, तुम जीवन पथ पर विजय हो, समृद्ध बनो वह खूब तरक्की करो, दूब घास की तरह तुम्हारी जड़ सदा हरी भरी रहे। आकाश की तरह ऊंची हो जाओ और धरती की तरह चौड़े हो जाओ और तुम्हें दीर्घायु प्राप्त हो। सियार जैसी बुद्धि हो और जब तक की हिमालय में बर्फ है और गंगा जी में पानी है तब तक तुम यह त्यौहार मनाते रहो।

Harela पर्व कैसे मनाया जाता है

सावन लगने के 9 दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज जैसे – गेहूं, जौं, धान, उड़द, गहत, मक्का और सरसों के बीजों को एक छोटी सी टोकरी में मिट्टी डालकर बोया जाता है और प्रतिदिन सुबह व शाम पानी से खींचा जाता है।

वह इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और कुछ दिनों के अंदर ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं उसके बाद इसकी गुड़ाई की जाती है तथा अंतिम 10 वे दिन यानी हरेली के दिन इसे काटा जाता है।

परंपरा के अनुसार घर के बड़े सदस्य सुबह पूजा पाठ करके हरेले को देवी-देवताओं को चढ़ाते हैं, वह तत्पश्चात घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है। भगवान का आशीर्वाद समझकर कुछ हरेले सिर पर वह कान के पीछे रखे जाते हैं।

हरेला घर में सुख-शांति व समृद्धि के लिए बोया जाता है। यह पर्व अच्छी फसल का सूचक है। हरेला इस कामना से बोया जाता है कि साल में फसलों को किसी प्रकार का नुकसान ना हो और यह भी मान्यता है, कि हरेला जितना बड़ा होगा उतना ही उस वर्ष फसल अच्छी होगी व कृषि में फायदा होगा।

इस दिन घर के छोटे सभी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं व घर की कुंवारी कन्या सबको पिठियां(रोली) लगाती है। इस दिन घर में अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर आस पड़ोस में बांटने की परंपरा प्रचलित है। वैसे तो हरेला हर घर में बोया जाता है परंतु किसी किसी गांव में यह की परंपरा है कि सामूहिक रूप से ग्राम देवता मंदिर में सामूहिक हरेला बोया जाता है और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

उत्तराखंड के बारे में और अधिक जानने के लिए आप यहां Click करें 👉 Click Here

हरेला साल में कितने बार मनाया जाता हैं?

हरेला पर्व वर्ष में 3 बार आता है। पहला चैत्र मास में व दूसरा सावन मास में और तीसरा वर्ष का आखिरी पर्व हरेला अश्विन मास में मनाया जाता है। सावन मास में मनाया जाने वाला हरेला ही प्रमुख हरेला माना जाता है

हरेला पर्व किसका प्रतीक है?

यह पर्व हरियाली का प्रतीक हैं। इस दिन किसान भगवान से अच्छी फसल की कामना करते हैं। हरेला बरसात के मौसम की उगने वाली पहली फसल का भी प्रतीक माना जाता है।

हरेला त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

सावन लगने के 9 दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज जैसे – गेहूं, जौं, धान, उड़द, गहत, सरसों और भट्ट के बीजों को एक छोटी सी टोकरी में मिट्टी डालकर बोया जाता है और प्रतिदिन सुबह व शाम पानी से खींचा जाता है।वह इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और कुछ दिनों के अंदर ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं उसके बाद इसकी गुड़ाई की जाती है तथा अंतिम 10 वे दिन यानी हरेली के दिन इसे काटा जाता है।

in Which month Harela is celebrated?

harela पर्व सावन मास में मनाया है। यह पर्व हर साल कर्क संक्रांति को मनाया जाता है।

हरेला इस वर्ष कब मनाया जा रहा है?

इस साल यह 16 July 2023 को मनाया जा रहा है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Best Time to Visit Uttarakhand dehradun आये हो तो यहाँ जरूर जाना 🗺️ Kawad Yatra 2024 के नियम Rishikesh आओ तो यहाँ जरूर जाना (रहस्य्मयी जगहे) Top Universities in Uttarakhand – Certified by NAAC Ranking Uttarakhand का स्वर्ग (पहाड़ो की रानी) Uttarakhand: राज्य में जल्द होगी 1000 अतिथि शिक्षकों की भर्ती। आसमान की ऊंचाइयों को छूता कार्तिक भगवान का मंदिर (अभी देखें) क्या आप Uttarakhand के बारे में ये जानते हैं? क्या आप रक्षाबंधन का महत्त्व जानते हैं? अभी जाने 👉