Guptkashi | गुप्तकाशी

Guptkashi

Guptkashi को हिमालय की काशी भी कहा जाता है। हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थान पांडवों की मोक्ष प्राप्ति का अंतिम चरण था। जिसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को पंच केदार के रूप में प्रकट होकर दर्शन भी दिए और उनका उद्धार किया।

वैसे तो भारत में 3 काशी प्रसिद्ध है – काशी विश्वनाथ (वाराणसी), और अन्य दो काशी उत्तराखंड देव भूमि में स्थित है, पहला काशी विश्वनाथ मंदिर जो कि उत्तरकाशी ज़िले में स्थित हैं। वही दूसरा काशी है, गुप्तकाशी (Guptkashi) जोकि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित है।

विश्वनाथ मंदिर में स्थित भगवान शिव का शिवलिंग स्वयं ही प्रकट हुआ था, जिस कारण इसे प्रकट काशी भी कहा जाता है।

हिंदू धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान को बहुत अधिक महत्वता दी गई है, Guptakashi चार धाम यात्रा सहित केदारनाथ यात्रा का भी एक बहुत ही मुख्य पड़ाव है।

Guptkashi में दो प्रमुख मंदिर है – प्रथम विश्वनाथ मंदिर और द्वितीय अर्धनारीश्वर मंदिर। जिनके दर्शन मात्र से ही शिव भक्त का जीवन सफल हो जाता है।

History Of Guptkashi

इस  स्थान में दर्शन कर सभी यात्री केदारनाथ की ओर प्रस्थान करते हैं, और यात्रा को उसी क्रम में पूर्ण करते हैं जिस प्रकार पांडवों ने यात्रा को पूर्ण किया था। यह स्थान पांडवों की मोक्ष यात्रा का अंतिम चरण इसलिए कहलाया क्योंकि नकुल और सहदेव को यहां पर भगवान के होने का आभास हुआ था।

पांडवों के यहां पहुंचते ही भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें कि गुप्त हो गए। पांडव समझ गए थे कि भगवान उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते हैं, तब पांडवों ने इस स्थान पर भगवान शिव और माता सती की आराधना की जिससे माता सती प्रसन्न हो गई और उन्होंने पांडवों को वरदान मांगने के लिए कहा।

तब पांडवों ने महादेव के दर्शन करने की इच्छा जताई भगवान शिव माता सती की बात को टाल नहीं सके और पांडवों को अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए।

पांडवों ने प्रसन्न होकर यहां पर अर्धनारीश्वर मंदिर का निर्माण किया। पांडव अर्धनारीश्वर रूप को देखकर प्रसन्न तो हुए परंतु वह अपने पापों से मुक्ति नहीं पा सके थे।

इस दिव्य धाम में प्रवेश लेते ही आपको भगवान शिव की अनुभूति होगी, Guptkashi में एक महर्षि अगस्त्य की तपोभूमि है, जो राजा दशरथ के राजगुरु थे। विद्वान रावण उनके भाई विश्वा के ही पुत्र थे भगवान श्री राम की विजय तीर इन्होंने ही प्रदान की थी।

पुरानी परंपरा के अनुसार यहाँ दान नारियल के अंदर रखकर दिया जाता है, कई श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति के लिए यहां गुप्त दान भी किया करते हैं।

माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यहां पर कई वर्षों तक तपस्या की थी, जिस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा तब माता पार्वती ने भगवान शिव के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। महादेव ने भी शादी का प्रस्ताव स्वीकार किया।

जिसके बाद महादेव और माता पार्वती का विवाह Chamoli ज़िले के त्रियुगीनारायण मंदिर में संपन्न हुआ था। यही वह स्थान है जहां माता पार्वती और शिव जी का प्रेम विवाह हुआ था।

जोकि ब्रह्मांड में पहला प्रेम विवाह माना जाता है। मुख्य मंदिर के ठीक सामने ही 1 कुंड स्थित है, जिसे मणिकर्णिका कुंड नाम से जानते हैं। इस कुंड में स्नान करने का भी बहुत महत्व है ऐसा माना जाता है कि इसमें स्नान करने से भक्तों को निरोगी काया और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

इस अद्भुत कुंड का रहस्य हर किसी को आश्चर्य में डाल देता है, क्योंकि कुंड में एक तरफ गोमुख से यमुना जी और दूसरी ओर आदि मुख से गंगा जी के जलधाराएं अनंत काल से निरंतर बह रही है।

इन जल धाराओं का उद्गम कहां से होता है यह आज तक रहस्य बना हुआ है, यह दोनों ही पवित्र नदियां मंदिर से अलग दिशा में बहती है। साथ ही ना तो यह कुंड कभी भरता है और ना ही कभी खाली होता है इस कुंड में सदैव ही समान जल स्तर रहता है।

आज तक इस रहस्य को कोई नहीं सुलझा पाया है इस कुंड में स्नान को स्वर्ग के गंगासागर में स्नान समान माना गया है।

Guptkashi नाम कैसे पड़ा

जब महाभारत काल में पांडवों द्वारा अपने ही परिजनों की हत्या की गई थी तब उन्हें अपने गोत्र, गुरु और पुत्रों की हत्या का पाप लगा था तब वे लोग अपने पाप का उद्धार करने के लिए ब्रह्म ऋषि नारद के पास गए और उनसे इस पाप से मुक्त होने का उपाय मांगा तब नारद जी उन्हें हिमालय में महादेव की शरण में जाकर उनकी पूजा-अर्चना करने का सुझाव देते हैं इसलिए पांडव महादेव के दर्शन के अभिलाषी थे।

ताकि उनको अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष मिल सके। जब पांडव सबसे पहले देव भूमि आए तब वह सबसे पहले हरिद्वार गए, हरिद्वार में भगवान शिव ध्यान में बैठे थे जब उन्हें पांडवों के आने का पता चला तो वे वहां से गुप्त रूप से अंतर्ध्यान हो गए और हिमालय आ गए ।

Guptkashi

जब भगवान ने इस स्थान पर तपस्या प्रारंभ की पांडव भी उन्ही के पीछे पीछे इस स्थान पर पहुंच गए । पांडवों पर ब्रह्म हत्या के पाप के कारण भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं दे रहे थे। भगवान शिव के गुप्त हो जाने के कारण ही इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा था।

भगवान शिव यहां से अंतर्धान हो करके केदारनाथ चले गए थे । पांडवों ने इस स्थान पर तपस्या करके अपने पितरों का तर्पण किया और गुप्त दान किया और फिर से वह भगवान शिव के पीछे पीछे केदारनाथ पहुंच गए ।

भगवान शिव पांडवों को दर्शन ना देने के लिए एक हल किया वहां पर हजारों की संख्या पर भैंस उत्पन्न हो गए जिस कारण पांडवों का रास्ता बंद हो गया और पांडव लोग आगे नहीं जा पाए । तब भीम ने दो पहाड़ों में (जय और विजय) में अपनी दोनों टांगे रखी और सारे भाइयों को कहा कि सारी भैंसों को मेरी टांग की नीचे से भगाते जाओ ।

सारी भैंस निकल जाएंगी और जिस भैंस में भगवान शिव का अंश होगा वह भैंस नहीं निकलेगी और हुआ भी ऐसा ही जिस भैंस में भगवान शिव का अंश था वह पृथ्वी में उसी स्थान में समा गई जैसे ही वह भैंस पृथ्वी में समा रही थी तो भीम ने उस भैंस का पूछ पकड़ लिया।

भगवान शिव ने उन्हें वहां पर लिंग रूप में दर्शन दिया और तभी आकाशवाणी हुई की है पांडवों में आपको सभी पापों से मुक्ति प्रदान करता हूं । जिसके बाद पांडवों ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की और उस स्थान पर प्रकट हुए लिंग पर घी मला और केदारनाथ मंदिर की स्थापना की जिसके बाद एक-एक करके पांडव अंतर्ध्यान हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई ।

GuptkasHi कैसे पहुंचे

By Train:

  • निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो गुप्तकाशी से लगभग 22 किमी दूर है।
  • ऋषिकेश से आप टैक्सी या बस लेकर गुप्तकाशी पहुँच सकते हैं।

By Road:

  • दिल्ली, हरिद्वार, रिशिकेश हाइवे पर गुप्तकाशी के लिए निकलना होगा।
  • दिल्ली से गुप्तकाशी की दूरी लगभग 425 किमी है।
  • रिशिकेश से गुप्तकाशी तक निजी वाहन या टैक्सी/बस ले सकते हैं।

By Air:

  • जॉली ग्रांट हवाई अड्डा जो की Dehradun में स्थित है, गुप्तकाशी से लगभग 25 किमी दूर सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है।
  • दिल्ली से जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं।
  • हवाई अड्डे से टैक्सी लेकर आप गुप्तकाशी पहुँच सकते हैं।

Guptkashi से Kedarnath यात्रा

Guptkashi से केदारनाथ तक हेलीकॉप्टर से जाने में लगभग 25-30 मिनट का समय लगता है।

  • गुप्तकाशी, केदारनाथ से लगभग 15 किमी दूर है।
  • केदारनाथ भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है जहाँ भगवान शिव का एक ज्योतिर्लिंग स्थित है।
  • गुप्तकाशी से केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर सेवा उपलब्ध है जो लगभग 25-30 मिनट में दोनों स्थानों के बीच की दूरी तय कर लेती है।
  • हेलीकॉप्टर की फ्लाइट में 6 से 8 लोगों के बैठने की क्षमता होती है।
  • हेलीकॉप्टर सेवा का किराया प्रति व्यक्ति लगभग 2000 से 2500 रुपये है।
  • हेलीकॉप्टर से जाने से समय की बचत होती है और वहाँ के खूबसूरत दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है।

इस प्रकार गुप्तकाशी से केदारनाथ तक की हेलीकॉप्टर यात्रा लगभग 25-30 मिनट में पूरी हो जाती है।

Conclusion

इस Blog के माध्यम से हमने Guptkashi के बारे में जाना, Guptkashi को हिंदू धार्मिक ग्रंथों में बहुत अधिक महत्वता दी गई है, Guptakashi चार धाम यात्रा सहित केदारनाथ यात्रा का भी एक बहुत ही मुख्य पड़ाव है। आपको चार धाम यात्रा सहित Guptkashi का भी अवश्य जरूर भ्रमण करना चाहिए।

गुप्तकाशी का नाम गुप्तकाशी क्यों पड़ा?

जब भगवान ने इस स्थान पर तपस्या प्रारंभ की पांडव भी उन्ही के पीछे पीछे इस स्थान पर पहुंच गए । पांडवों पर ब्रह्म हत्या के पाप के कारण भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं दे रहे थे। पांडवों के यहां पहुंचते ही भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें कि गुप्त हो गए। पांडव समझ गए थे कि भगवान उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते हैं, भगवान शिव के गुप्त हो जाने के कारण ही इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा था।

Guptkashi की विशेषता क्या है?

Guptkashi को हिमालय की काशी भी कहा जाता है। हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थान पांडवों की मोक्ष प्राप्ति का अंतिम चरण था। जिसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को पंच केदार के रूप में प्रकट होकर दर्शन भी दिए और उनका उद्धार किया।

Guptkashi से केदारनाथ जाने में हेलीकॉप्टर से कितना समय लगता है?

Guptkashi से केदारनाथ तक हेलीकॉप्टर से जाने में लगभग 25-30 मिनट का समय लगता है। तथा हेलीकॉप्टर सेवा का किराया प्रति व्यक्ति लगभग 2000 से 2500 रुपये है।

गुप्तकाशी की कहानी क्या है? Story of Guptkashi ?

Guptkashi को पांडवों की मोक्ष यात्रा का अंतिम चरण इसलिए कहलाया क्योंकि नकुल और सहदेव को यहां पर भगवान के होने का आभास हुआ था।
पांडवों के यहां पहुंचते ही भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें कि गुप्त हो गए। पांडव समझ गए थे कि भगवान उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते हैं, तब पांडवों ने इस स्थान पर भगवान शिव और माता सती की आराधना की जिससे माता सती प्रसन्न हो गई और उन्होंने पांडवों को वरदान मांगने के लिए कहा।
तब पांडवों ने महादेव के दर्शन करने की इच्छा जताई भगवान शिव माता सती की बात को टाल नहीं सके और पांडवों को अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए।

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