Haat Kalika मंदिर Uttarakhand के पिथौरागढ़ जिले में Gangolihat नामक एक खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र में बसा है। इस जगह का नाम Gangolihat पड़ने का कारण है, कि यह जगह सरयू नदी, गंगा नदी तथा रामगंगा नदी के मध्य है। इस क्षेत्र को प्राचीन काल में गंगा वाली कहा जाता है।
गंगे स्थानीय बोली में नदी को कहा जाता है, जो धीरे-धीरे बदलकर गंगोली हो गया। 13 वी शताब्दी से पहले यहां पर कत्यूरी राजवंश का शासन हुआ करता था। उस समय बाजार को जिस स्थानीय बोली में हाट कहते हैं, गंगोली में हाट जोड़कर इस क्षेत्र को गंगोलीहाट नाम मिला।
Gangolihat बाजार से करीब 1 किलोमीटर दूर मंदिर के समीप वाहन पार्किंग की सुविधा भी है। यहां पर कई दुकानें भी है जहां से मंदिर के लिए चुनरी प्रसाद इत्यादि खरीद सकते हैं। Haat Kalika का मंदिर सुंदर देवदार के वृक्षों से खिला है। इसकी प्राकृतिक छटा लोगो का मन मोह लेती है।
हजारों साल पहले आदि गुरु शंकराचार्य, Badrinath, Kedarnath होते हुए यहां पर आए, तो उन्हें आभास हुआ कि यहां पर कोई दैवीय शक्ति है। यहां पर मां ने उन्हें कन्या के रूप में दर्शन दिया और कहा कि उन्हें ज्वाला रूप से शांत रूप में ले आओ। तब यहां पर महाकालिका शक्ति पीठ की स्थापना हुई जो कि आदि गुरु शंकराचार्य जी के द्वारा की गई।
mandir main chamatkar
यह भी माना जाता है कि Kolkata में मां काली मंदिर में विराजित महाकाली का ही शक्ति रूप Gangolihat के Haat Kalika मंदिर में विराजमान है। मंदिर के गर्भ गृह में एक रहस्य अद्भुत है वहां पर माता का एक बिस्तर है। जिसके लिए दावा किया जाता है, कि महाकाली रात्रि में विश्राम करने के लिए यहां पर जरूर आती है। रोज रात में माता के इस बिस्तर को पूरे विधि विधान से बिछाया जाता है। मंदिर में 7 जगहों पर अलग-अलग ताले भी लगाए जाते हैं। और जब सुबह 5:00 बजे द्वार खोले जाते हैं। इस बिस्तर पर सरवटे मिलती है यह वह शक्तिपीठ है जो रहस्य से भरी है, विश्वास है कि मां काली यही प्रकट हुई थी।
स्कंद पुराण के मानस कंड में भी मां का वर्णन है। कहा जाता है कि रोज रात को यहां पर मां का डोला चलता है इस डोले के साथ मां के गणों की सेना भी चलती है। मान्यता है कि जो कोई भी इस डोले को छू लेता है, उसे दिव्य वरदान प्राप्त होता है।
Story of Kumaun Regiment
सुबह 5:00 बजे से मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है। भारतीय सेना के कुमाऊं रेजिमेंट के हाट कालिका से चुनाव के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। द्वितीय विश्वयुद्ध जो सन 1939 से 1945 के बीच हुआ था के समय एक बार भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा था तब भारतीय सैन्य अधिकारियों ने जवानों से कहा कि वे अपने-अपने ईश्वरओं को याद करें और कुमाऊं की एक सैनिक ने जैसे ही मां काली का जयकारा लगाया तो वैसे ही जहाज किनारे पर आ गया। तभी से कुमाऊं रेजिमेंट मां काली को अपने आराध्य देवी के रूप में मानते हैं।
हर साल मां के महीने में यहां पर सैनिक थल सेना के अधिकारी बड़ी संख्या में मां के दर्शन के लिए आते हैं। यहां मंदिर के निर्माण जीर्णोद्धार और कई रास्तों और धर्मशाला के निर्माण में स्थानीय लोगों श्रद्धालुओं के साथ बड़ी संख्या में भारतीय सेना से जुड़े लोग का भी योगदान है। गंगोलीहाट के सभी दर्शनीय स्थलों में पिथौरागढ़ बेरीनाग, ढोलछीना जागेश्वर आदि है।
Haat Kalika Kaise Jaye
गंगोलीहाट से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर 162 किलोमीटर और काठगोदाम रेलवे स्टेशन 190 किलोमीटर दूर है, और नजदीकी Airport नैनी सैनी एयरपोर्ट पिथौरागढ़ जो 84 किलोमीटर है और पंतनगर हवाई अड्डा 230 किलोमीटर है दिल्ली लखनऊ देहरादून और इससे बड़े शहरों से आने के लिए पहले हल्द्वानी आना पड़ता है हल्द्वानी से गंगोलीहाट पहुंचने के लिए प्राइवेट टैक्सी और बस सर्विस आदि मिल जाती है मां कालिका से विनती है कि वह सब का कल्याण करें।
Conclusion
हमारे सनातन धर्म में आज भी ऐसे कई रहस्य हैं जिनके बारे में कोई भी नहीं जान पाया है। इस Blog में हमने आपको उत्तराखंड के हाटकालिका मंदिर जो की गंगोलीहाट छेत्र, पिथौरागढ़ ज़िले में स्थित हैं। उसके बारे में बताया तथा यहाँ की मान्यता के बारे में भी बताया है।